उत्तर भारत के हरियाणा प्रदेश के मध्य में स्थित एक शहर “जीन्द”। भौगोलिक के साथ-साथ, बहुत हद तक प्रादेशिक राजनीति का केन्द्र बिन्दु। महाभारत की पृष्ठभूमि में पले बसे इस जिले के कई स्थान, पौराणिक कथा से संबंधित है। और इसी वजह से उनका नामकरण भी पांडवों पर आधारित है। जहाँ इतिहास के पन्नों में, आस-पास का क्षेत्र राजिया सुल्तान के जीवन से जुड़ा हुआ है वहीं पटियाला के महाराजा से स्थानीय राजा के निकट एवं घनिष्ठ संबंध थे। दिल्ली से मात्र 20-25 कि.मी. की दूरीय चारों ओर से करनाल, सोनीपत, पानीपत, रोहतक एवं हिसार जैसे जिलों से घिरे एवं सड़क मार्ग द्वारा उन से जुड़े हुये इस जिले में आज भी हरियाणा के ग्रामीण परिवेश की साफ झलक दिखाई देती है। उत्तम किस्म की भैंसों के लिये यह शहर, मध्य एवं पश्चिम भारत के दूर दराज इलाकों में भी प्रसिद्ध हैं। जहाँ स्थानीय परिवार के बच्चों द्वारा प्रमुखता से बहुत अधिक मात्रा में दूध पीया जाता है वहीं बड़ों द्वारा शराब का बहुतायत में सेवन किया जाता है। गाँव हो या शहरी क्षेत्र विशेष किस्म का हुक्का हर घर की शान एवं बुजुर्गों की दिन चर्चा में शामिल है। जाट बहुल इस कृषि प्रधान क्षेत्र में जमीन अत्यंत उपजाऊ एवं पूर्णतः सिंचित है। आर्थिक रूप से संपन्न स्थानीय किसानों की एक जुटता एवं जागरूकता ने विभिन्न किसान आंदोलनों को समय-समय पर जन्म दिया। आस-पास के क्षेत्रों में पश्चिमी संस्कृृति की चाहे जितनी तेज हवा बह रही हो, परंतु यहाँ पर भारतीय संस्कृृति की जड़े अत्यधिक गहरी परिलक्षित होती हैं।
दूरसंचार जिला जीन्द के प्रबंधक के रूप में, पाँच वर्षों का लंबा कार्यकाल, मेरे जीवन का एक स्वर्णिम युग था। पूर्व में यूनियन गतिविधियों के लिए बदनाम इस दूरसंचार के यूनिट में विशेष रूप से पदस्थ किये जाने पर, यह देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि स्थानीय नागरिक और कर्मचारी बेहद स्पष्ट, सरल, सीधे और सच्चे हैं। थोड़ी सी मेहनत और सभी के सकारात्मक सहयोग से 2002 में यह जिला दूरसंचार के क्षेत्र में पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया एवं इन्हीं कारणों से मेरी भी विशिष्ट कर्मभूमि बना। जीवन की इतनी बड़ी एवं विशेष उपलब्धि को यादगार बनाने के लिये, सभी साथी कर्मचारियों द्वारा, चंदे के माध्यम से, दुर्गा मन्दिर की स्थापना करना, एक अनोखा एवं अलौकिक अनुभव था। भव्य एवं आकर्षक मंदिर के माध्यम से, जीन्द से मेरा सदा के लिये रिश्ता बन गया, जो सदैव इस शहर की यात्रा करने के लिये मुझे प्रेरित करता है।
इंटरनेट, कम्प्यूटर एवं दूरसंचार का समिश्रण, आधुनिक युग की सर्वश्रेष्ठ देन है। इसने संपूर्ण विश्व को, एक तंत्र एवं जाल में बांधकर, दूरियों को समाप्त कर, एक परिवार में परिवर्तित कर दिया। मेरी वेबसाईट के संयोजक, क्लासिक कम्प्यूटरस के सी.ई.ओ. श्री सुनील अरोड़ा के भी इसी शहर से होने पर, जीन्द से लगाव का एक और कारण बन जाता है। यह इंटरनेट का ही कमाल है कि सैंकड़ों कि.मी. की दूरी पर रहने के बावजूद हम दोनों मिल कर एक उद्देश्यपूर्ण, आकर्षक वेबसाईट को नियमित रूप से प्रयोजनीय एवं विकसित कर पा रहे हैं। इतनी नियोजित एवं आधुनिक वेबसाईट को देखकर यह अंदाज लगाना बेहद मुश्किल है कि यह एक छोटे से शहर में तैयार की जाती है। ज्ञान एवं विकास, स्थान नहीं व्यक्ति पर निर्भर करता है। सुनील की लगन, मेहनत एवं दृष्टि में विविधता और विशालता का वर्षों पहले, अपने जीन्द कार्यकाल के दौरान ही मुझे आभास हो गया था। वर्षों बाद जीन्द प्रवास के दौरान यह सुनकर हैरानी हुयी कि आठ या नौ वर्ष की उम्र तक सुनील पूर्ण रूप से तंदरूस्त थे। तकरीबन बीस वर्ष पूर्व एक रात अचानक उनके पैरों में हलचल बंद हुयी। तब से आज तक उन्हें दोनों पैरों के पोलियोग्रस्त होने से चलने में कठिनाई होती है। सैंकड़ों लोगों को कम्प्यूटर की शिक्षा प्रदान करना, कईयों को रोजगार देने वाले, स्वावलंबी और भावनात्मक रूप से अपने परिवार के सदस्यों द्वारा प्रेरित सुनील को दिव्यांग कहने में किसी को भी लज्जा और शर्म आ सकती है। परंतु शारीरिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ आज के हजारों पढ़े-लिखे बेरोजगार नव युवकों को शायद नहीं आयेगी, जो बड़े हो कर भी या तो माँ बाप पर आश्रित होते हैं या फिर गलत कार्यों में तल्लीन। सुनील इन लोगों के लिये एक आदर्श और प्रेरणा के स्त्रोत हो सकते हैं। इन्हीं भावनाओं के साथ उन्हें एवं जीन्द शहर के लिये, मेरी ओर से जिन्दाबाद!!!
मनोज कुमार सिंह
डी.जी.एम., बी.एस.एन.एल.
चण्डीगढ़